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Articles by जॉन ब्लैस

सच्चे आराधक

उसे आख़िरकार उस चर्च जाने का मौका मिला । वह तहखाने के भीतरी भाग में, वह छोटे गुफा या खोह(grotto) में पहुंची । वह संकरा स्थान मोमबत्तियों से भरा था और फर्श का एक कोना लटके हुए लैंप्स से आलोकित था । वह यहाँ था──एक चौदह नोकवाला चाँदी का तारा, जो संगमरमर के फर्श के उभरे हुए हिस्से को ढँक रहा था । वह बेतलहेम में ग्रोटो ऑफ़ द नेटीविटी में थी──वह स्थान जहाँ परम्परा के अनुसार मसीह ने जन्म लिया था । फिर भी लेखिका एनी डिलार्ड प्रभावित से कम महसूस करते हुए समझ ली कि परमेश्वर इस स्थान से बहुत बड़ा था । 

फिर भी, ऐसे स्थान हमारे विश्वास की कहानियों में बड़ा महत्व रखते हैं । एक और ऐसा स्थान यीशु और कूंएं पर उस स्त्री के बीच बातचीत में वर्णित है──वह पहाड़──गरिज्जीम पर्वत का सन्दर्भ देते हुए(व्यवस्थाविवरण 11:29)──जहाँ उसके “बापदादों ने आराधना की” (यूहन्ना 4:20) । वह सामरियों के लिए पवित्र था, जिन्होंने इसे यहूदी जिद्द के विपरीत बताया कि यरूशलेम ही था जहाँ सच्ची आराधना होती थी (पद.20) । हालाँकि, यीशु ने घोषणा की कि वह समय आ चूका है जब आराधना किसी ख़ास स्थान तक सीमित नहीं थी, लेकिन एक व्यक्ति : सच्चे भक्त पिता की आराधना आत्मा और सच्चाई से करेंगे” (पद.23) । उस स्त्री ने मसीह(Messiah) में अपना विश्वास जताया, लेकिन उसने नहीं पहचाना कि वह उससे बात कर रही थी । “यीशु ने उस से कहा, ‘मैं जो तुझ से बोल रहा हूँ, वही हूँ’” (पद.26) । 

परमेश्वर किसी पहाड़ या भौतिक स्थान तक सीमित नहीं है । वह हमारे साथ सभी जगह उपस्थित है । हर दिन जो सच्चा तीर्थ हम करते हैं वह उसके सिंहासन के पास पहुँचना है क्योंकि हम साहसपूर्वक कहते हैं, “हमारे पिता,” और वह वहाँ उपस्थित है । 

परमेश्वर आपके लिए गाता है

हमारे पहले बच्चे──एक लड़का──के जन्म के सत्रह महीने बाद, एक लड़की पैदा हुई  l मैं एक लड़की का विचार करके अत्यधिक आनंदित हुआ, लेकिन मैं थोड़ा असहज भी था, क्योंकि जब मैं छोटे लड़कों के बारे में कुछ बातें जानता था, मैं बेटियों के सम्बन्ध में अनजान था l हमने उसका नाम सारा (Sarah) रखा, और उसको हिला-डुला कर सुलाना मेरा सौभाग्य था ताकि मेरी पत्नी आराम कर सके l मुझे नहीं मालूम क्यों, लेकिन मैंने उसे गाना गाकर सुलाना शुरू किया, और गाने का चुनाव था “यू आर माई सनशाइन l” चाहे उसे अपनी बाहों में थामे हुए या उसके पालने के ऊपर झुके हुए, मैं पूरी तरह से उसके लिए गाता था, और गाने के हर क्षण का आनंद लेता था l अब वह 20 वें वर्ष में है, और मैं अभी भी उसे सनशाइन(Sunshine) बुलाता हूँ l 

हम आमतौर पर स्वर्गदूतों के गाने के बारे में सोचते हैं l लेकिन आखिरी बार आपने परमेश्वर के गायन के बारे में कब सोचा था? सही है──परमेश्वर का गायन l और इसके अलावा, आखिरी बार आपने उसको आपके लिए कब गाते सुना है? सपन्याह यरूशलेम के लिए अपने सन्देश में स्पष्ट है, “तेरा परमेश्वर यहोवा” तेरे कारण आनंद से मगन होगा, यहाँ तक कि वह “ऊंचे स्वर से गाता हुआ तेरे कारण मगन होगा” (3:17) l यद्यपि यह संदेश सीधे तौर पर यरूशलेम से बात करता है, यह संभव है कि परमेश्वर हमारे लिए भी गाता है──जिन्होंने यीशु को उद्धारकर्ता ग्रहण किया है! कौन सा गीत वह गाता है? पवित्रशास्त्र इसके सम्बन्ध में स्पष्ट नहीं है l लेकिन वह गीत उसके प्रेम से उत्पन्न हुआ है, इसलिए हम भरोसा कर सकते हैं कि यह सच्चा है और उत्कृष्ट है और सही है और पवित्र है और खूबसूरत है और प्रशंसनीय है (फिलिप्पियों 4:8) l 

जो कुछ भी

प्रत्येक शुक्रवार की शाम, मेरा परिवार जो राष्ट्रीय समाचार देखता है वह अपना प्रसारण एक प्रेरक कहानी को हाईलाइट करके समाप्त करता है l यह हमेशा ताज़ी हवा का श्वास है l हाल ही के एक “शुभ” शुक्रवार की कहानी एक रिपोर्टर के ऊपर केन्द्रित थी जो कोविड-19 से बीमार होकर, पूरी तरह स्वस्थ हो चुकी थी, और उसके बाद दूसरों की वायरस के विरुद्ध उनकी लड़ाई में सम्भवतः मदद करने के लिए प्लाज्मा दान करने का निर्णय ली थी l उस समय, न्याय समिति यह फैसला करने की कोशिश कर रही थी कि एंटीबोडी कितनी प्रभावशाली होगी l लेकिन जब हममें से अनेक खुद को असहाय महसूस किये और (सूई द्वारा) प्लाज्मा दान करने की बेचैनी के प्रकाश में भी, उसने महसूस किया कि वह “संभावित अदाएगी के लिए एक छोटी कीमत थी l”

उस शुक्रवार के प्रसारण के बाद, मेरा परिवार और मैं प्रोत्साहित महसूस हुए──हिम्मत के साथ मैं कहता हूँ आशा से भरपूर l “जो कुछ भी” की सामर्थ्य यही है जिसका वर्णन पौलुस फिलिप्पियों 4 में करता है : “जो जो बातें सत्य हैं, और जो जो बातें आदरणीय हैं, और जो जो बातें उचित हैं, और जो जो बातें पवित्र हैं, और जो जो बातें सुहावनी हैं, और जो जो बातें मनभावनी हैं” (पद.8) l क्या पौलुस के मन में प्लाज्मा दान करना था? जी नहीं l लेकिन क्या उसके मन में दूसरे ज़रुरतमंदों के लिए लाभहीन कार्य थे──दूसरे शब्दों में, मसीह के समान व्यवहार? मुझे कोई शक नहीं कि उत्तर हाँ है l 

लेकिन उस आशापूर्ण समाचार का पूरा प्रभाव नहीं होता यदि वह प्रसारित नहीं होता l यह हमारा विशेषाधिकार है कि हम अपने चारों ओर “जो कुछ भी” को देखने और सुनने के लिए परमेश्वर की भलाई के साक्षी हैं और फिर दूसरों के साथ उस अच्छी खबर को साझा करें जिससे वे प्रोत्साहित हो सकते हैं l 

एक अच्छा कारण

दोनों महिलाओं ने एक दूसरे के आरपार गलियारों के सीट हासिल कर लिए l उड़ान दो घंटे की थी, इसलिए मैं उनकी कुछ परस्पर क्रियाओं को देखने से खुद को रोक न सका l यह स्पष्ट था कि वह एक दूसरे से परिचित थीं, शायद सम्बंधित भी होंगी l दोनों में से कम उम्र की महिला (शायद साठ के दशक में) निरंतर अपने बैग से ताज़े सेब के फांक, उसके बाद घर के बनी सैंडविच, फिर सफाई के लिए टिश्यू पेपर, और अंत में अखबार की ताजी प्रति उम्र में बड़ी महिला (मेरे अनुमान में जो नब्बे की दशक में थी) को देती रही l प्रत्येक वस्तु बड़ी कोमलता, बड़े आदर से दी गयी l जब हम विमान से बाहर निकल रहे थे, मैंने उम्र में कम महिला से कहा, ‘मैंने आपके देखभाल के तरीके पर ध्यान दिया l वह बहुत सुन्दर था l” उसने उत्तर दिया, “वह मेरी सबसे प्रिय मित्र है l वह मेरी माँ है l”

यह कितनी महान बात होती यदि हम सब कुछ उस प्रकार बोल पाते? कुछ माता-पिता सबसे अच्छे मित्र की तरह होते हैं l कुछ माता-पिता उस तरह के बिलकुल नहीं होते l सच्चाई यह है कि उस प्रकार के सम्बन्ध अपने सर्वोत्तम में हमेशा जटिल होते हैं l जबकि तीमुथियुस को लिखी गई पौलुस की पत्री इस जटिलता की उपेक्षा नहीं करती है, इसके बावजूद यह हमें अपने माता-पिता और दादा-दादी──हमारे “अपने,” अपने “घराने” की देखभाल करने के द्वारा “पहले अपने ही घराने के साथ भक्ति का बर्ताव” करने का आह्वान करता है (1 तीमुथियुस 5:4,8) l 

हम सभी भी अक्सर इस तरह की देखभाल का अभ्यास करते हैं, यदि परिवार के सदस्य हमारे लिए अच्छे थे या हैं l दूसरे शब्दों में, अगर वे इसके लायक हैं l लेकिन पौलुस उन्हें चुकाने के लिए एक और सुन्दर कारण प्रस्तुत करता है l उनकी देखभाल करें क्योंकि “यह परमेश्वर को भाता है” (पद.4) l 

न्याय का परमेश्वर

शायद यह इतिहास का सबसे महान “बलि की गाय” थी। हम नही जानते कि उसका नाम डेज़ी, मेडलिन, या ग्वेंडोलिन था (हर एक नाम सुझाया गया नाम है), पर शिकागो में 1871 की आग के लिए श्रीमती ओ’लियरी की गाय को दोषी माना गया जिसके कारण शहर का हर तीसरा निवासी बेघर हो गया था l लकड़ियों की संरचनाओं में से गुज़रती हुयी आग तेज हवा के कारण तीन दिनों तक जलती रही और लगभग तीन-सौ लोगों की जान ले ली l 

कई वर्षों तक, लोगों को यह लगा कि किसी गौशाले में रात को जलती हुयी लालटेन को उस गाय द्वारा ठोकर मारने के कारण आग लगी थी l अगली छानबीन के बाद──126 साल बाद──पुलिस और अग्नि की शहरी समिति ने स्वीकृत प्रस्ताव पारित कर गाय और उसके मालिक को दोषमुक्त करते हुए पड़ोसियों की अनुबद्ध जांच का सुझाव दिया l  

न्याय अक्सर समय लेता है, और पवित्र शास्त्र स्वीकार करता है कि यह कितना मुश्किल हो सकता है l राग में दोहराने के शब्द, "कब तक?" भजन 13 में चार बार दोहराए गए हैं, “हे परमेश्वर, कब तक?” क्या सदैव मुझे भुला रहेगा? तू कब तक अपना मुखड़ा मुझसे छिपाए रहेगा? मैं कब तक अपने मन ही मन में युक्तियाँ करता रहूँ, और दिन भर अपने हृदय में दुखित रहा करूं? कब तक मेरा शत्रु मुझ पर प्रबल रहेगा?” (पद. 1-2) l लेकिन अपने विलाप के मध्य, दाऊद विश्वास और आशा का कारण ढूंढ लेता है : “परन्तु मैंने तो तेरी करुणा पर भरोसा रखा है; मेरा हृदय तेरे उद्धार से मगन होगा (पद.5) ।”

यहाँ तक कि जब न्याय विलंबित होता है, परमेश्वर का प्रेम हमें कभी धोखा नहीं देगा l हम उस में भरोसा कर सकते हैं और आराम पा सकते है न केवल उस पल के लिए परन्तु हमेशा के लिए l 

परमेश्वर के साथ समय बिताना

ए रिवर रन्स थ्रू इट(A River Runs Through It) नॉर्मन मेक्लीन की दो लड़कों की बेहतरीन कहानी है जो अमेरिका के एक पश्चिमी राज्य में अपने पिता, एक प्रेस्बिटेरियन पास्टर के साथ बड़े हो रहे थे । रविवार की सुबह, नॉर्मन और उसका भाई, पॉल, चर्च जाते थे जहाँ वे अपने पिता को उपदेश देते हुए सुनते थे l रविवार की शाम, एक दूसरी आराधना होती थी और उनके पिता फिर से उपदेश देते थे l लेकिन उन दोनों आराधनाओं के बीच, वे उसके साथ पहाड़ियों और नदियों की सैर करने के लिए स्वतंत्र थे, “जब वह अपने आप को ताज़ा करते थे ।“ उनके पिता जानबूझकर अपने आप को “शाम के उपदेश के लिए अपनी आत्मा को नया करने और पुनः भरकर उमंडने के लिए” अलग करते थे l 

सुसमाचारों में हर जगह, यीशु पहाड़ों पर और शहरों में भीड़ को शिक्षा देते हुए और बीमारों और अस्वस्थ लोगों को चंगा करते हुए दिखाई देता है जो उसके पास लाये जाते थे l यह सब परस्पर क्रियाएँ मनुष्य के पुत्र का मिशन/उद्देश्य “खोए हुओं को ढूँढने और उनका उद्धार करने” के अनुकूल था (लूका 19:10) l  लेकिन यह भी ध्यान दिया गया है कि वह अक्सर “जंगलों में अलग जाकर प्रार्थना किया करता था” (5:16) l उसका समय वहाँ पर पिता के साथ बातचीत करने में व्यय होता था, जिससे वह तरोताज़ा और नवीकृत होकर फिर से अपने मिशन में कदम रख सके l 

सेवा करने के हमारे विश्वासयोग्य प्रयासों में, हमारे लिए यह याद रखना जरूरी है कि यीशु “अक्सर” अलग जाता था । यदि यह अभ्यास यीशु के लिए जरूरी था, तो हमारे लिए और कितना अधिक है? हम नियमित रूप से अपने पिता के साथ समय बिताएँ, जो हमें फिर से उमड़ने तक भर सकता है ।

परमेश्वर का राज्य

मेरी माँ अपनी जिन्दगी के दौरान बहुत सारी चीजों के प्रति समर्पित रही है, लेकिन छोटे बच्चों का यीशु से परिचय कराना निरंतर उनकी इच्छा में बनी रही l कई एक बार मैंने अपनी माँ को सर्वजनिक रूप में असहमत होते देखा, सब उपस्थित थे जब किसी ने कुछ और को अधिक “गंभीर खर्च” समझकर उसके पक्ष में बच्चों की सेवा बजट में कटौती करने का प्रयास किया l “एक गर्मी के मौसम में मैंने छुट्टी ले ली जब मैं तुम्हारे भाई के साथ गर्भवती थी, यही सही था,” वह मुझसे बोली l मैंने थोड़ा पारिवारिक गणित किया और मैंने एहसास किया कि मेरी माँ पचपन सालों से चर्च में बच्चों के साथ काम कर रही थी ।

मरकुस 10 सुसमाचारों में मनभावन कहानियों में से एक को अंकित करता है जिसे आम तौर पर “छोटे बच्चे और यीशु” शीर्षक दिया जाता है l लोग बच्चों को यीशु के पास ला रहे थे कि वह उन पर हाथ रखें और उन्हें आशीष दे । पर चेलों ने इसे रोकने की कोशिश की । मरकुस उल्लेख करता है कि यीशु “क्रोधित” हुआ──और अपने ही चेलों को डांटा : “बालकों को मेरे पास आने दो और उन्हें मना मत करो, क्योंकि परमेश्वर का राज्य ऐसों ही का है” (पद.14) l

चार्ल्स डिकिन्स ने लिखा, “मैं इन छोटे लोगों से प्यार करता हूँ; और यह कोई मामूली बात नहीं जब वे, जो परमेश्वर की ओर से इतने नये हैं, हमसे प्यार करते है ।“ और यह कोई मामूली बात नहीं जब हम, जो उम्रदार हैं, यह सुनिश्चित करने के लिए सब करते हैं जो हम कर सकते है कि यीशु के हमेशा नया रहनेवाले प्रेम से बच्चे कभी वंचित न रह जाएँ l

छोटे से छोटे की सेवा

उसका नाम स्पेंसर है l लेकिन हर कोई उसे “स्पेंस” पुकारता है l वह हाई स्कूल में स्टेट ट्रैक चैंपियन था;  फिर वह एक पूर्ण शैक्षणिक छात्रवृत्ति पर एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में पढ़ने चला गया l वह अब अमेरिका के सबसे बड़े शहरों में से एक में रहता है और रासायनिक इंजीनीयरिंग(chemical engineering) के क्षेत्र में बहुत सम्मानित है l लेकिन अगर आप स्पेंस से उसकी सबसे बड़ी उपलब्धियों के बारे में पूछते,  तो वह उन चीजों में से किसी का भी उल्लेख नहीं करता l वह उत्साहपूर्वक उन यात्राओं के बारे में जो वह हर कुछ महीनों में एक जरूरतमंद राष्ट्र का करता है आपको बताता जो वह उस देश के सबसे गरीब क्षेत्रों में उसकी सहायता से स्थापित किए गए ट्यूशन कार्यक्रम में बच्चों और शिक्षकों की जांच कर सके l और वह आपको बताएगा है कि उनकी सेवा करके उसका जीवन कितना समृद्ध हुआ है l

“इनमें से छोटा से छोटा l” यह एक वाक्यांश है जिसे लोग कई तरह से उपयोग करते हैं,  फिर भी यीशु ने इसका उपयोग उन लोगों के विषय में बताने के लिए किया है,  जिनके पास संसार के मानकों के अनुसार,  हमारी सेवा के बदले में हमें देने के लिए बहुत कम या कुछ भी नहीं है l वे पुरुष और महिलाएं और बच्चे हैं जिन्हें संसार अक्सर अनदेखा कर देता है─यदि उन्हें पूरी तरह से भूल न भी जाए l फिर भी ये बिलकुल वही लोग हैं जिन्हें यीशु यह कहते हुए इस खूबसूरत स्तर तक उठाता है, “तुमने जो [इनके लिए] किया, वह मेरे ही लिए किया” (मत्ती 25:40) l मसीह के अर्थ को समझने के लिए आपके पास एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय से कोई डिग्री नहीं होनी चाहिए : “छोटे से छोटे” की सेवा करना उसकी सेवा करने के बराबर है l  इसमें केवल एक इच्छुक हृदय की ज़रूरत होती है l 

लिखने का उद्देश्य

“प्रभु मेरा ऊँचा गढ़ है . . . . हम शिविर छोड़ते समय गा रहे थे l” 7 सितंबर, 1943 को, एट्टी हिल्सम ने पोस्टकार्ड पर इन शब्दों को लिखकर ट्रेन से फेंक दिया l वे अंतिम रिकॉर्ड किए गए शब्द थे जो हम उनसे सुन सकते थे l 30 नवंबर, 1943 को ऑउशवेट्ज़ में उनकी हत्या कर दी गई थी l बाद में, (द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान) एक नज़रबंदी-शिविर(concentration camp) में हिल्सम के अनुभवों की डायरी का अनुवाद और प्रकाशन किया गया l उन्होंने परमेश्वर के संसार की सुंदरता के साथ नाज़ी(Nazi/नात्सी/फासिस्ट) कब्जे की भयावहता के बारे में उसके दृष्टिकोण को लेखबद्ध किया l उसकी डायरी का अनुवाद सरसठ भाषाओं में किया गया है - सभी के लिए एक उपहार जो अच्छा और बुरा दोनों को पढ़ेंगे और विश्वास करेंगे l
प्रेरित यूहन्ना ने पृथ्वी पर यीशु के जीवन की कठोर वास्तविकताओं को रद्द नहीं किया; उसने दोनों ही को लिखा, भलाई जो यीशु ने किया और चुनौतियाँ जिनका उसने सामना किया l उसके सुसमाचार के अंतिम शब्द उस पुस्तक के पीछे के उद्देश्य का बोध कराते हैं जो उसके नाम है l यीशु ने “बहुत से चिन्ह . . . दिखाए,” ((20:30) जो यूहन्ना द्वारा लिखे नहीं गए l लेकिन ये शब्द, उसका कहना है, “इसलिए लिखे गए हैं कि तुम विश्वास करो” (पद.31) l यूहन्ना की “डायरी” विजय के स्वर पर समाप्त होती है : “यीशु ही परमेश्वर का पुत्र मसीह है l” सुसमाचार के इन शब्दों का उपहार हमें विश्वास करने और “उसके नाम से जीवन” पाने का अवसर देता है l
सुसमाचार हमारे लिए परमेश्वर के प्रेम का डायरी खाता है l वे शब्द पढ़ने और विश्वास करने और साझा करने के लिए हैं, क्योंकि वे हमें जीवन की ओर ले जाते हैं l वे हमें मसीह की ओर ले जाते हैं l